सल्तनतकालीन स्थापत्य कला का विकास एक क्रमिक विकास की प्रक्रिया का परिणाम था। इस विकासक्रम में निम्नलिखित चरण दिखाई देते हैं:
प्रारंभिक काल (12वीं-13वीं शताब्दी)
इस काल में सल्तनतकालीन स्थापत्य कला पर ईरानी और मध्य एशियाई प्रभावों का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। इस काल के प्रमुख उदाहरणों में दिल्ली का कुतुब मीनार, अजमेर का अल्फ्रेड कब्रिस्तान, और वाराणसी का जौनपुरी दरवाजा शामिल हैं।
मध्यकाल (14वीं-15वीं शताब्दी)
इस काल में सल्तनतकालीन स्थापत्य कला में भारतीय और इस्लामी दोनों शैलियों का मिश्रण दिखाई देता है। इस काल के प्रमुख उदाहरणों में दिल्ली का लाल किला, फतेहपुर सीकरी, और अमृतसर का स्वर्ण मंदिर शामिल हैं।
उत्तरकाल (16वीं-17वीं शताब्दी)
इस काल में सल्तनतकालीन स्थापत्य कला में भारतीय शैली का प्रभाव अधिक स्पष्ट दिखाई देता है। इस काल के प्रमुख उदाहरणों में दिल्ली का हुमायूँ का मकबरा, आगरा का ताजमहल, और फतेहपुर सीकरी का बादशाही महल शामिल हैं।
सल्तनतकालीन स्थापत्य कला के विकासक्रम में निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ दिखाई देती हैं:
- इस्लामी स्थापत्य की विशेषताओं का प्रयोग: सल्तनतकालीन स्थापत्य कला में इस्लामी स्थापत्य की प्रमुख विशेषताओं का प्रयोग किया गया है। इन विशेषताओं में गुंबद, मीनार, और मोज़ेक शामिल हैं।
- भारतीय स्थापत्य की विशेषताओं का प्रयोग: सल्तनतकालीन स्थापत्य कला में भारतीय स्थापत्य की प्रमुख विशेषताओं का भी प्रयोग किया गया है। इन विशेषताओं में शिल्पकारी, मूर्तिकला, और चित्रकला शामिल हैं।
- स्थानीय सामग्री का प्रयोग: सल्तनतकालीन स्थापत्य कला में स्थानीय सामग्री का प्रयोग किया गया है। इन सामग्री में ईंट, पत्थर, और संगमरमर शामिल हैं।
सल्तनतकालीन स्थापत्य कला ने भारतीय स्थापत्य कला के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस काल में निर्मित कई इमारतें आज भी भारत की स्थापत्य विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।